Saturday, November 10, 2007

Hari kathaa

रघुवंशी महाराजा रंतिदेव हमेशा दीन दुखियों की सेवा में रत रहते थे. वे सदैव सभी जीवों के कल्याण के लिए प्रभु से प्रार्थना करते थे. वे हमेशा दानधर्म के कामों में लगे रहते. अतिशय दानशीलता के कारण एक समय ऐसा आया कि उनका राजसी खजाना खाली हो गया. उनके लिए खाने को भी कुछ न बचा. इस कारण राजा अपने परिवार और बच्चों के साथ परिवार सहित जंगल चले गए. जंगल में भी काफी दिनों तक उन्हें बिना भोजन के ही बिताना पड़ा. बहुत दिनों के बाद उन्हें खाना नसीब हुआ. वे परिवार के साथ बांटकर भोजन खाना ही चाहते थे कि उनके पास एक ब्रह्मण आ गए. उन्होने राजा से भोजन कराने को कहा. राजा बचा खाना परिवार के साथ बांटकर खा पाते इससे पहले एक शुद्रदेव वहाँ आ गए और भोजन पाने कि बात कही. महाराज रंतिदेव ने उन्हें बचा हुआ भोजन दे दिया. उन्होने सोचा कि पानी पीकर ही अपना और अपने परिवार का पेट भर लेंगे. पर इतने में ही कुत्तों के झुंड से साथ चांडाल वहाँ पहुंचा और राजा से जल देने का आग्रह किया. राजा ने बिना हिचकिचाए उन्हें सारा जल दे दीया. यह महाराज रंतिदेव कि परीक्षा थी. ब्राह्मण, शूद्र और चांडाल के भेष में वास्तव में त्रिदेव brahmaa, विष्णु और महेश उनकी परीक्षा लेने आए थे. राजा इसमे सफल हुए. सभी जीवों के प्रति एक समान भाव रखने के कारण उन्हें भगवद धाम मिला जो कि योगियों के लिए भी दुर्लभ होता है।

No comments:

Post a Comment