मार्ग दर्शन
अगली शताब्दी का विषय ईश्वर और ईश्वर भक्ति है. चाहे यहूदी मार्ग से हो, इसाई मार्ग से हों, इस्लाम के मार्ग से हों या हिन्दू के मार्ग से हों, जिस रस्ते से भी हों – अब पारलौकिक बातों पर मन को लगाना होगा. बिना भक्ति को अपने जीवन का अंग बनाये मानव अपने कष्टों से मुक्त नही हो सकेगा. पर ध्यान रहे भक्ति कोई धर्म या संप्रदाय नही बन जाए.
भक्ति मात्र एक दर्शन नहीं है, कोई धर्म भी नही है, भक्ति एक ऐसा विज्ञान है जो व्यक्ति को आमूल परिवर्तित कर देता है. भक्ति उसकी विचारधारा को तथा वृत्तियों को रूपांतरित कर देती है. अगली शताब्दी भक्ति योग की है. केवल आम जनों के लिए ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक शोध कर्त्ताओं के लिए भी. जो वैज्ञानिक आज तथ्यों पर शोध करते हैं, वे सब अब भक्ति पर शोध करेंगे. भक्ति का मनुष्य के व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है, भक्ति का परम चेतना पर क्या प्रभाव पड़ता है, इन पर शोध होंगे.
भक्ति का सिर्फ पूजा पाठ से ही संबंध है ऐसा नही है. पूजा अपनी जगह पर है, कीजिए पर इतना जरुर जानिए कि भक्ति भावना का नाम है. भक्ति की पढ़ाई के लिए स्कूल मे जाने की या किताब पढ़ने की जरुरत नही है. केवल रास्ता बदलना पड़ता है. दुश्मनी, गुस्सा, वासना आदि के रास्ते पर जा रही भावना को भगवान की तरफ लगा दीजिये तो उसे भक्ति कहते हैं.
अगली शताब्दी का विषय ईश्वर और ईश्वर भक्ति है. चाहे यहूदी मार्ग से हो, इसाई मार्ग से हों, इस्लाम के मार्ग से हों या हिन्दू के मार्ग से हों, जिस रस्ते से भी हों – अब पारलौकिक बातों पर मन को लगाना होगा. बिना भक्ति को अपने जीवन का अंग बनाये मानव अपने कष्टों से मुक्त नही हो सकेगा. पर ध्यान रहे भक्ति कोई धर्म या संप्रदाय नही बन जाए.
भक्ति मात्र एक दर्शन नहीं है, कोई धर्म भी नही है, भक्ति एक ऐसा विज्ञान है जो व्यक्ति को आमूल परिवर्तित कर देता है. भक्ति उसकी विचारधारा को तथा वृत्तियों को रूपांतरित कर देती है. अगली शताब्दी भक्ति योग की है. केवल आम जनों के लिए ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक शोध कर्त्ताओं के लिए भी. जो वैज्ञानिक आज तथ्यों पर शोध करते हैं, वे सब अब भक्ति पर शोध करेंगे. भक्ति का मनुष्य के व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है, भक्ति का परम चेतना पर क्या प्रभाव पड़ता है, इन पर शोध होंगे.
भक्ति का सिर्फ पूजा पाठ से ही संबंध है ऐसा नही है. पूजा अपनी जगह पर है, कीजिए पर इतना जरुर जानिए कि भक्ति भावना का नाम है. भक्ति की पढ़ाई के लिए स्कूल मे जाने की या किताब पढ़ने की जरुरत नही है. केवल रास्ता बदलना पड़ता है. दुश्मनी, गुस्सा, वासना आदि के रास्ते पर जा रही भावना को भगवान की तरफ लगा दीजिये तो उसे भक्ति कहते हैं.
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