Saturday, November 10, 2007

Geetaa Darshan

श्रीमद भगवद्गीता पर चर्चा करने से पहले हमें अपनी संकीर्ण बुद्धि को प्रभु का आगे समर्पित कर देना चाहिए. वह बुद्धि जो हमें श्री गीता को तर्क के आधार पर समझाने को प्रेरित करती है, उस बुद्धि का हमें त्याग कर देना चाहिए क्योंकि श्री गीता स्वयम भगवन श्री कृष्ण के मुखारविंद से निकली है. अतः ये प्रभु कि साक्षात् कृपा का ही पर्याय है. गीता के प्रत्येक अद्याय को प्रभु ने हमें योग के रूप मी दिया है, जिसमें विषाद योग से लेकर मोक्ष सन्यास योग तक हैं. और इस तरह योग का प्रसाद प्रभु ने अपनी असीम कृपा के द्वारा इसलिए दिया है कि हम इस योग के लक्ष्य को पा सकें. योग का आशय है जोड़ना और लक्ष्य है प्रभु से व उनकी अनंत सत्ता से जुडाव. सो हम सब इस योग कि युक्ति को अपना कर अपनी मुक्ति को बढ़ें.

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