एक गाँव में एक संत पहुंचे उस गाँव के मुखिया ने उनका स्वागत किया और कुछ दिन वंहा ठहर जाने को कहा गाँव के सभीलोगों के आग्रह करने पर वो वंहा रुक गए समय अपनी गति से बीतता चला जा रहा था एक गाँव के मुखिया ने तीर्थ पर जाने का निश्चये किया उसके पास बीस सोने के सिक्के परे थे उसने सोचा ये धन किसके देख रेख में छोर जाओं तवी उसकी पत्नी ने उस संत के देख रेख में छोर जाने की सलाह दी उसको भी ये बात अच्छी लगी और वो उसी वक्त उस संत के पास गया और उनसे अनुरोध किया की उनके तीर्थ से लोटने तक उसके बीस सोने के सिक्के को संभाल कर रखें वो वापस आकर ले जाएगा संत ने अनुमति दे दी और मुखिया निश्चिंत होकर तीर्थ को चला गया कुछ दिन बाद वो तीर्थ से लोटा तो सीधा वो संत क पास गया और अपने पैसे लेकर आ गया
अपनी पत्नी को वो पैसे देकर गाँव वालों से मिलने चला गया उसके जाने के बाद मुखिया का दोस्त आया उसने मुखिया को दो सोने के सिक्के उधार दिए थे वो वापस मांगने आया था उसकी पत्नी ने दो सिक्के उस पोटली में से निकाल कर दे दिए कुछ देर बाद मुखिया घर आया और उसने संत को दिए हुए पैसे वाली पोटली निकला और गिनने लगा दो सोने के सिक्के कम थे उसे लगा संत ने उसके पैसे लिये हैं वो ततछन गाँव में जा कर सभी को संत के खिलाफ भरकाने लगा गाँव वालों ने मिलकर संत का अपमान किया तभी मुखिया की पत्नी स्नान कर के
लोटी उसने संत का अपमान होए हुए देखा उसने अपने पति से पूछा , मुखिया ने कहा तुम्हारे कहने पे संत के देख रेख में बीस सोने के सिक्के छोर गया था उसमे से दो सिक्के कम हैं इस संत ने चुरा लिया मुखिया की पत्नी ये सुनते ही रोने लगी और कहा एक बार मुझसे पूछ तो लेते वो जो दो सिक्के कम हैं वो मैं ने ही आपके दोस्त को दिए वो आपके जाने केबाद आए थे और अपने पैसे मांग रहे थे सो मैंने ही उसमे से दो सिक्के निकाल कर उनको दे दिया ये सुनकर गाँव वालों और मुखिया को बेहद दुःख हुआ वे संत के चरणों में गिर कर माफ़ी मांगने लगे संत ने दो मुट्ठी रेत लिया और कहा एक मुट्ठी रेत तुम्हारे दिए हुए मान सम्मान पर डालता हूँ दूसरी मुट्टी की रेत तुम्हारे अपमान पर डालता हूँ और ऐसा कह कर वो वंहा से चले गए
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