रघुवंशी महाराजा रंतिदेव हमेशा दीन दुखियों की सेवा में रत रहते थे. वे सदैव सभी जीवों के कल्याण के लिए प्रभु से प्रार्थना करते थे. वे हमेशा दानधर्म के कामों में लगे रहते. अतिशय दानशीलता के कारण एक समय ऐसा आया कि उनका राजसी खजाना खाली हो गया. उनके लिए खाने को भी कुछ न बचा. इस कारण राजा अपने परिवार और बच्चों के साथ परिवार सहित जंगल चले गए. जंगल में भी काफी दिनों तक उन्हें बिना भोजन के ही बिताना पड़ा. बहुत दिनों के बाद उन्हें खाना नसीब हुआ. वे परिवार के साथ बांटकर भोजन खाना ही चाहते थे कि उनके पास एक ब्रह्मण आ गए. उन्होने राजा से भोजन कराने को कहा. राजा बचा खाना परिवार के साथ बांटकर खा पाते इससे पहले एक शुद्रदेव वहाँ आ गए और भोजन पाने कि बात कही. महाराज रंतिदेव ने उन्हें बचा हुआ भोजन दे दिया. उन्होने सोचा कि पानी पीकर ही अपना और अपने परिवार का पेट भर लेंगे. पर इतने में ही कुत्तों के झुंड से साथ चांडाल वहाँ पहुंचा और राजा से जल देने का आग्रह किया. राजा ने बिना हिचकिचाए उन्हें सारा जल दे दीया. यह महाराज रंतिदेव कि परीक्षा थी. ब्राह्मण, शूद्र और चांडाल के भेष में वास्तव में त्रिदेव brahmaa, विष्णु और महेश उनकी परीक्षा लेने आए थे. राजा इसमे सफल हुए. सभी जीवों के प्रति एक समान भाव रखने के कारण उन्हें भगवद धाम मिला जो कि योगियों के लिए भी दुर्लभ होता है।
Saturday, November 10, 2007
Geetaa Darshan
श्रीमद भगवद्गीता पर चर्चा करने से पहले हमें अपनी संकीर्ण बुद्धि को प्रभु का आगे समर्पित कर देना चाहिए. वह बुद्धि जो हमें श्री गीता को तर्क के आधार पर समझाने को प्रेरित करती है, उस बुद्धि का हमें त्याग कर देना चाहिए क्योंकि श्री गीता स्वयम भगवन श्री कृष्ण के मुखारविंद से निकली है. अतः ये प्रभु कि साक्षात् कृपा का ही पर्याय है. गीता के प्रत्येक अद्याय को प्रभु ने हमें योग के रूप मी दिया है, जिसमें विषाद योग से लेकर मोक्ष सन्यास योग तक हैं. और इस तरह योग का प्रसाद प्रभु ने अपनी असीम कृपा के द्वारा इसलिए दिया है कि हम इस योग के लक्ष्य को पा सकें. योग का आशय है जोड़ना और लक्ष्य है प्रभु से व उनकी अनंत सत्ता से जुडाव. सो हम सब इस योग कि युक्ति को अपना कर अपनी मुक्ति को बढ़ें.
Monday, November 5, 2007
प्रार्थना
प्रार्थना
आलोकित पथ करो हमारा
हे जग के अंतर्यामी
शुभ प्रकाश दो, स्वच्छ दृष्टि दो
जड़ चेतन सब के स्वामी
तुच्छ हमारे मन के हे प्रभु
दुर्विचार सब दूर करो
प्रेरित हों हम केवल तुमसे
ऐसी हममे शक्ति भरो
तुम्ही बन्धु हो, तुम्ही पिता हो
तुम्ही मार्गदर्शक जीवन में
भक्ति और आलोक तुम्हारा
हम उतार लें निज तन मन में.
आलोकित पथ करो हमारा
हे जग के अंतर्यामी
शुभ प्रकाश दो, स्वच्छ दृष्टि दो
जड़ चेतन सब के स्वामी
तुच्छ हमारे मन के हे प्रभु
दुर्विचार सब दूर करो
प्रेरित हों हम केवल तुमसे
ऐसी हममे शक्ति भरो
तुम्ही बन्धु हो, तुम्ही पिता हो
तुम्ही मार्गदर्शक जीवन में
भक्ति और आलोक तुम्हारा
हम उतार लें निज तन मन में.
मार्ग दर्शन
अगली शताब्दी का विषय ईश्वर और ईश्वर भक्ति है. चाहे यहूदी मार्ग से हो, इसाई मार्ग से हों, इस्लाम के मार्ग से हों या हिन्दू के मार्ग से हों, जिस रस्ते से भी हों – अब पारलौकिक बातों पर मन को लगाना होगा. बिना भक्ति को अपने जीवन का अंग बनाये मानव अपने कष्टों से मुक्त नही हो सकेगा. पर ध्यान रहे भक्ति कोई धर्म या संप्रदाय नही बन जाए.
भक्ति मात्र एक दर्शन नहीं है, कोई धर्म भी नही है, भक्ति एक ऐसा विज्ञान है जो व्यक्ति को आमूल परिवर्तित कर देता है. भक्ति उसकी विचारधारा को तथा वृत्तियों को रूपांतरित कर देती है. अगली शताब्दी भक्ति योग की है. केवल आम जनों के लिए ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक शोध कर्त्ताओं के लिए भी. जो वैज्ञानिक आज तथ्यों पर शोध करते हैं, वे सब अब भक्ति पर शोध करेंगे. भक्ति का मनुष्य के व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है, भक्ति का परम चेतना पर क्या प्रभाव पड़ता है, इन पर शोध होंगे.
भक्ति का सिर्फ पूजा पाठ से ही संबंध है ऐसा नही है. पूजा अपनी जगह पर है, कीजिए पर इतना जरुर जानिए कि भक्ति भावना का नाम है. भक्ति की पढ़ाई के लिए स्कूल मे जाने की या किताब पढ़ने की जरुरत नही है. केवल रास्ता बदलना पड़ता है. दुश्मनी, गुस्सा, वासना आदि के रास्ते पर जा रही भावना को भगवान की तरफ लगा दीजिये तो उसे भक्ति कहते हैं.
अगली शताब्दी का विषय ईश्वर और ईश्वर भक्ति है. चाहे यहूदी मार्ग से हो, इसाई मार्ग से हों, इस्लाम के मार्ग से हों या हिन्दू के मार्ग से हों, जिस रस्ते से भी हों – अब पारलौकिक बातों पर मन को लगाना होगा. बिना भक्ति को अपने जीवन का अंग बनाये मानव अपने कष्टों से मुक्त नही हो सकेगा. पर ध्यान रहे भक्ति कोई धर्म या संप्रदाय नही बन जाए.
भक्ति मात्र एक दर्शन नहीं है, कोई धर्म भी नही है, भक्ति एक ऐसा विज्ञान है जो व्यक्ति को आमूल परिवर्तित कर देता है. भक्ति उसकी विचारधारा को तथा वृत्तियों को रूपांतरित कर देती है. अगली शताब्दी भक्ति योग की है. केवल आम जनों के लिए ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक शोध कर्त्ताओं के लिए भी. जो वैज्ञानिक आज तथ्यों पर शोध करते हैं, वे सब अब भक्ति पर शोध करेंगे. भक्ति का मनुष्य के व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है, भक्ति का परम चेतना पर क्या प्रभाव पड़ता है, इन पर शोध होंगे.
भक्ति का सिर्फ पूजा पाठ से ही संबंध है ऐसा नही है. पूजा अपनी जगह पर है, कीजिए पर इतना जरुर जानिए कि भक्ति भावना का नाम है. भक्ति की पढ़ाई के लिए स्कूल मे जाने की या किताब पढ़ने की जरुरत नही है. केवल रास्ता बदलना पड़ता है. दुश्मनी, गुस्सा, वासना आदि के रास्ते पर जा रही भावना को भगवान की तरफ लगा दीजिये तो उसे भक्ति कहते हैं.
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